Wednesday, 11 April 2012

MohallaLive: राजघाट पर हमारी आवाज को बाकायदा कुचल दिया गया!


गर आपको जानना हो कि इस देश में डेमोक्रेसी की क्या हालत है, तो जरा मेरी एक नेक सलाह पर गौर फरमाइएगा। अपने कुछ मित्रों के साथ आप सरकार के विरोध में एक प्रोटेस्ट का प्रोग्राम रख लीजिए। इसके बाद की जाने वाली पूरी सर्कस के बाद आप शायद यह कहना बंद कर देंगे कि हम इंडिया में एक डेमोक्रेसी में रह रहे हैं और इस देश को आजादी मिल चुकी है। आपकी आवाज को कुचलने के लिए सरकार की हदों को तो आप हरगिज मत परखिएगा। यकीन मानिए आप ढेरों मुश्किलों का सामना करते करते थक जाएंगे। हमारे साथ सरकार ने किन किन दमनकारी नीतियों का सहारा लिया, इसको पढ़ लीजिए। अगर हमारी बातों पर आपको यकीन न आए, तो जरूर संपर्क कीजिए। हमें जानकर खुशी होगी कि वाकई हमारी तरह आप भी कम से कम इतना तो नहीं सोच रहे होंगे।
सेव योर वाइस की ओर से हमने एक अप्रैल को राजघाट पर कपिल सिब्बल को मूर्ख दिवस की शुभकामनाएं देने के लिए सिब्बल्स डे का आयोजन किया था। इस आयोजन के बारे में फेसबुक और दूसरे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म्स के जरिये लाखों लोगों तक फूल्स डे का मैसेज पहुंचाया गया था। कार्यक्रम में तमाम इंटरनेट यूजर्स, ब्‍लॉगर्स, पत्रकार और सामाजिक कार्यतकर्ताओं ने शिरकत करने की घोषणा की थी। इस दौरान वालस्ट्रीट जर्नल ने भी एक स्टोरी [स्‍टोरी लिंक] लिखी, जिसमें कांग्रेस प्रवक्ताओं और आईटी मिनिस्ट्री के बयान भी लिये गये। कई दूसरे अखबारों ने भी इस बाबत खबर छापी और इसी के बाद सारा खेल शुरू हुआ।
सुबह जब हम 11 बजे अपने तय समय पर राजघाट पहुंचे, हमें गेट पर ही रोक लिया गया। महात्मा गांधी की समाधि पर शांति प्रार्थना करने की भी इजाजत नहीं दी गयी। राजघाट पर पहुंचते ही हमारे मोबाइलों पर दरियागंज पुलिस स्टेशन से अधिकारियों से फोन आने लगे थे। आश्चर्य तो तब हो गया, जब असीम के मोबाइल पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन से ऋषीकेश का भी फोन आया और उन्‍होंने असीम से पूछा कि राजघाट पर किये जा रहे इस प्रोग्राम के लिए टीम ‘सेव योर वाइस’ ने पुलिस परमिशन ली है या नहीं। और तो और, गेट से एंट्री कर रहे हर एक मेंबर से इस बारे में पड़ताल की जा रही थी कि कहीं वह सिब्बल्स डे के कार्यक्रम में हिस्सा लेने तो नहीं पहुंचा है। किसी तरह हम समाधि स्थल तक पहुंचे, जहां ब्‍लॉगर अन्ना भाई अपने कुछ मित्रों के साथ पहले से ही मौजूद थे। हमारे पीछे कम से कम पुलिस के 50 जवान पहुंच गये। जबरन हमें परिसर से बाहर निकाल दिया गया और रोड पार कर समता स्थल पर पुलिस घेरे के बीच खड़ा कर दिया गया। वहां ड्यूटी दे रहे पुलिस कांस्टेबल्स ने बताया कि वे हमारा इतजार सुबह नौ बजे से ही कर रहे थे।
समता स्थल पर भी बड़ी संख्या में पुलिस बल, आईबी, सीआईडी और सीबीआई के लोग मौजूद थे। आश्चर्य की बात है कि पुलिस ने पूर्व अनुमति होने के बावजूद सिब्बल दिवस का आयोजन नहीं होने दिया। कारण पूछने पर उच्चस्तरीय आदेशों का हवाला दिया गया और कहा गया कि उन्हें पीएमओ और आईटी मिनिस्ट्री से आदेश दिये गये हैं। पुलिस के ही कुछ लोगों ने बताया कि सीआईडी की एक रिपोर्ट के बाद हम पर एक्शन लिया गया है। मालूम पड़ा कि पीएमओ से एक रिप्रेजेंटेटिव भी वहां पहुंचे हुए हैं। आईबी के एक अधिकारी भी समता स्थल पर मौजूद थे। पत्रकार मित्रों के हवाले से सूचना मिली कि एक अप्रैल को राजघाट पर पेट्रोलिंग की 16 गाड़ियां लगायी गयी थीं और पीएमओ इस पर लगातार अपडेट्स ले रहा था। कुछ पत्रकार बंधुओं के पास आईबी से भी कार्यक्रम की जानकारी को लेकर पिछली रात फोन आये, जिनके बारे में हमें बाद में पता चल पाया। पुलिस ने राजघाट पर इस बात के भरपूर इंतजाम कर रखे थे कि सिब्बल्स डे न मनाया जा सके।
इस पूरे घटनाक्रम के साथ कुछ तार जोड़ने के लिए मैं आपको हिंदुस्तान टाइम्स की उस स्टोरी [स्‍टोरी लिंक] का जिक्र जरूर करना चाहूंगा, जिसमें बताया गया है कि किस तरह सरकार विरोधी गतिविधियों को कुचलने के दिल्ली पुलिस ने अनशन और प्रोटेस्ट की फीस निर्धारित कर दी है। अगर आप एक दिन का प्रोटेस्ट करना चाहते हैं, तो आपको दिल्ली पुलिस को सिक्योरिटी के बंदोबस्त के लिए कम से कम 70 से 75 हजार रुपये चुकाने होंगे। रेट लिस्ट कुछ ऐसी है…
प्रति कांस्टेबल : 650 रुपये
प्रति इंस्पेक्टर : 1100 रुपये
सीसीटीवी : कम से कम 20 कैमरे, कीमत : 32,000 रुपये
बैगेज स्कैनर प्रति स्कैनर : 5000 रुपये

मजेदार बात यह है कि इस लिस्ट से राजनीतिक और धार्मिक नेताओं को पूरी छूट मिली हुई है। मतलब कि आपको यह कीमत इसलिए चुकानी है कि आप एक आम आदमी हैं और अपनी आवाज को बुलंद करने का कोई हक नहीं रखते हैं। अगर आप ऐसी कोशिश करते हैं, तो आपको तमाम तरीकों से कुचला जाएगा और आखिरकार आप थक-हार कर या प्रशासनिक धमकियों से घबरा कर अपना इरादा बदल देंगे। अगर हमारी आवाज को इसी तरह दबाया जाना है, आवाज उठाने के लिए पैसे भरना है और बापू की समाधि पर बैठने पर भारी भरकम पुलिस बल द्वारा खदेड़ा जाना है, तो हम किस डेमोक्रेसी की कद्र करें। आखिर क्यूं न हम इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें। इंतजार करें, हम जल्द लौट रहे हैं पूरी ताकत के साथ।
(आलोक दीक्षित। अपनी आवाज बचाओ (सेव योर वॉयस) अभियान के सक्रिय सदस्‍य। टीवी9 और दैनिक जागरण के साथ टीवी और प्रिंट की पत्रकारिता करने के बाद पिछले कुछ सालों से न्‍यू मीडिया में सक्रिय। मार्च 2011 से Bangalured के संपादक। आलोक से writeralok@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)