Thursday, 6 December 2012

आईटी एक्ट के सेक्शन 66 A के खिलाफ सेव योर वायस सदस्यों असीम त्रिवेदी और आलोक दीक्षित की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल



Date: 08 Dec 2012, Timing: 12 PM onwards
महोदय,
पिछले दिनों फेसबुक और तमाम आनलाइन माध्यमों का इस्तेमाल करने पर हमारे कई साथियों को जेल जाना पड़ा. इसके लिये आईटी एक्ट की धारा 66 (A), जिसे 2008 में जल्दबाजी में सूचना तकनीकी कानून के साथ जोड़ दिया गया था, जिम्मेदार है.
22 दिसंबर 2008 को संसद में महज़ 15 मिनट के भीतर 8 क़ानून पास हुए थे. आई टी एक्ट का सेक्शन 66-A भी उनमे से एक था. इससे पता लगता है कि कितनी लापरवाही के साथ इतना तानाशाही क़ानून पास कर दिया गया. यह पूरा का पूरा एक्ट यूनाइटेड किंगडम के 'पोस्ट आफिस एक्ट' की नकल है और वर्तमान परिस्थितियों में किसी भी आम इंटरनेट यूजर को जेल में डालने की क्षमता रखता है. आखिर जब इस कानून में इतनी खामियां है तो संसद इनमें सुधारों के लिये कोई पहल क्यूं नहीं करती? देश के आम नागरिकों के बीच सरकार डर क्यूं पैदा कर रही है?
हम अपने सांसदों को इसलिये नहीं चुनते कि वे संसद में बैठ कर ब्लू-फिल्म देखें या घोटालों पर घोटाले करते जाएं और हम जब आवाज उठाएं तो हमें जेल भेज दिया जाए. इस कानून को हटाने की जिम्मेदारी भी हमारी संसद और हमारे सांसदों की ही है.
आईटी एक्ट पर बहरी हो चुकी सरकार तक अपना संदेश पहुचाने के लिये हमारे साथी आलोक दीक्षित और असीम त्रिवेदी 8 दिसम्बर से जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठ रहे हैं. असीम त्रिवेदी खुद इस कानून के भुक्तभोगी हैं जिन्हे 08 सितम्बर 2012 को आईटी कानून की धारा 66 A और कई दूसरे कानूनों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था. मीडिया के साथियों ने उस समय अभिव्यक्ति की आजादी पर हुए इस हमले का पुरजोर विरोध करते हुए देश में फ्रीडम आफ स्पीचके समर्थन में एक अभियान छेड़ दिया था. एक बार फिर शाहीन, रेनू और सुनील विश्कर्मा की गिरफ्तारी ने इंटरनेट पर अपनी बात रख रहे लोगों के मन में भय का माहौल पैदा कर दिया है. इन सभी घटनाओं में राजनीतिक दलों की भूमिका किसी से छिपी नहीं हैं. जिस तरह इंटरनेट यूज़र्स को आये दिन गिरफ्तार किया जा रहा है, आज की युवा पीढ़ी के भीतर अजीब किस्म का डर बैठ गया है कि अगर वो राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर कुछ टिप्पणी करेंगे तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर सकती है. इसलिए बहुत आवश्यक है कि इंटरनेट यूज़र्स को खौफज़दा करने वाले इस क़ानून को ज़ल्द से ज़ल्द असंवैधानिक घोषित किया जाए, जो अनुच्छेद 19 में मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी को बाधित करता है. इस क़ानून की परिभाषा इतनी अस्पष्ट है कि किसी भी इंटरनेट यूज़र सेक्शन 66-A लगाकर गिरफ्तार किया जा सकता है. आज जब सभी ये मानते हैं कि ये क़ानून हमारी अभिव्यक्ति की आज़ादी को बाधित करता है तो फिर हमारी संसद इसे वापस लेने को क्यों तैयार नहीं है.
आपसे अनुरोध है कि जन्तर मंतर पहुच कर अभिव्यक्ति की आजादी के लिये किये जा रहे इस अनिश्चितकालीन अनशन में अपना सहयोग दें.
संपर्क सूत्र- आशीष तिवारी, मीडिया कोआर्डीनेटर, मोबाइल 08010730821
असीम त्रिवेदी- 09336505530, 09717900302, आलोक दीक्षित- 07499219770
Updates on Twitter: https://twitter.com/saveyourvoice
धन्यवाद.


                                                              साभार

                                                              आशीष तिवारी
                                                              सेव योर वाइस अभियान
                                                                                                            www.saveyourvoice.in