Thursday, 6 December 2012

जानिए क्यों हटायी जानी चाहिए आईटी एक्ट की धारा 66 ए


क्या है कानून?
आईटी कानून आईटी यानी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों के बीच होने वाली सूचना, जानकारी और आंकड़ों के आदान प्रदान पर लागू होता है.
इसी कानून में एक धारा है 66 ए जिसमें कथित तौर पर झूठे और आपत्तिजनक संदेश भेजने पर सजा का प्रावधान है.
इस धारा के तहत कंप्यूटर और संचार उपकरणों से ऐसे संदेश भेजने की मनाही है जिससे परेशानी, असुविधा, खतरा, विघ्न, अपमान, चोट, आपराधिक उकसावा, शत्रुता या दुर्भावना होती हो.
इसका उल्लंघन करने पर तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है.

कौन है दायरे में?
कंप्यूटर इस्तेमाल के बढ़ते चलन और सोशल मीडिया के फैलते दायरे को देखते हुए आईटी अधिनियम की अहमियत खासी बढ़ गई है.
हाल के समय में कई ऐसे मौके आए जब सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतासरकार और सरकारी एजेंसियों को नागवार गुजरी है.
कई राजनेताओं और सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणियों को लेकर सरकार के भीतर सेंसरशिप की बातें चलती रही .
आप भी फेसबुक या ट्विटर इस्तेमाल करते होंगे, कुछ पोस्ट करते होंगे कुछ लाइक करते होंगे, तो इस तरह आप भी आईटी कानून के दायरे में आ जाते हैं.

यह कानून क्यों हटाया जाना चाहिए?


1. इस कानून को हटाने का सबसे बड़ा कारण यह है की इस धारा को लागू करने का सरकार का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है. सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह कानून महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए लागू किया गया है. जबकि इस धारा 66A में परेशानी, खतरा, विघ्न, अपमान, चोट, आपराधिक, उकसावा, शत्रुता और दुर्भावना जैसे बिन्दुओं को जोड़कर इसे असीमित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने का माध्यम बना दिया गया है.

2. यह कानून किसी भी तरह से साइबर अपराध को नहीं रोकता. जिन उपरोक्त बिन्दुओं का उल्लेख किया गया है वो उनके लिए पहले से ही संविधान के किसी न किसी रूप में कानून बना हुआ है. इन्हे अभी सिर्फ राजनीतिक आलोचनाओं को रोकने के लिए ही कानून के रूप में लाया गया है. जब पहले से ही इन बिन्दुओं पर कानून बना हुआ है फिर इस कानून को बनाने का क्या उद्देश्य है. इसके अलावा राजनीति के खिलाफ बनाया गया एक कार्टून किस तरह से साइबर अपराध का उल्लंघन करता है. किसी राजनितिक हस्ती का विरोध या आलोचना करना किस प्रकार साइबर कानून का उल्लंघन है. प्रतिभापाटिल.कॉम नाम से बनाया गया डोमेन किस तरह कानून का उल्लंघन करता है.
3. आपतिजनक टिप्पड़ी के नाम पर इस धारा के माध्यम से आम आदमी के लिए तो सजा निर्धारित कर दी गयी है लेकिन जब नेता अपनी रैलियों में खुले आम अपनी बातों से अमन में जहर घोलने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है.
4. इन साइबर कानूनों को पहले के अन्य कानूनों की तुलना में बहुत कठोर बनाया गया है. जो कि बिलकुल भी समानुपातिक और न्यायोचित नहीं है. जबकि हमे सहित तरीके से अपनी बात कहने व विरोध करने का पूरा अधिकार है.
5. यह कानून साइबर अपराध अपराध को रोकने के लिए बनाया गया है लेकिन यह सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं है. अगर कोई फेसबुक या ट्विट्टर के माध्यम से किसी प्रभावशाली व्यक्ति या उसकी नीतियों के खिलाफ अपने विचार रखता है तो वो भी इस कानून के दायरे में आ सकता है और उसे सजा हो सकती है. इस तरह धारा 66 A की वजह से निर्दोष लोग भी इसके शिकार बन रहे हैं.
6. संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है की सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित में ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित किया जा सकता है. जबकि धारा 66(A) में साधारण और नुकसान न पहुंचाने वाले विचार भी कानून के उल्लंघन की श्रेणी में आ सकते हैं.
7. एक तरफ जहाँ बड़े-बड़े अपराधी अपराध करने के बाद छोटी सी सजा के बाद ही रिहा हो जाते हैं, वहीँ दूसरी तरफ दोस्तों के बीच फेसबुक के माध्यम से सिर्फ विचार प्रकट करने पर इस तरह की सजा का प्रावधान कहाँ तक ठीक है.
8. सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के नयी गाइडलाइन के अनुसार किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को ही ऐसे मामले दर्ज करने व कारवाई का अधिकार है, लेकिन देखा गया है की इससे पहले भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कहने पर ही केस दर्ज कर कई लोगों को झूठे मामलों में फंसाया गया था. इसके अलावा अगर पुलिस ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं करती तो अदालत में जाकर मामला दर्ज कराया जा सकता है.